Saturday, December 6, 2008

मोशे तुमसे मैं क्या कहूँ.......

"मम्मी तुम मुझे छोड़कर क्यों चली गई? प्लीज, जल्दी वापस आ जाओ.........वरना मैं भी तुमकों छोड़कर चला जाऊँगा।"

प्यार, मुनहार और धमकी मिले यह वाक्य मेरे नन्हें उस्ताद के हैं.......मेरे बेटे के। चौथे वसंत में कदम रखने के लिए उतावले हो रहे आयुष के वाक्यांश भी उनकी ही तरह तेजी से बड़े हो रहे हैं। अब उन्हें समझ में आने लगा है कि मम्मी ऑफिस के काम से बाहर जाती हैं और मम्मी का खुद से दूर होना उसे बिलकुल पसंद नहीं...इसलिए वे इस बात को जताने से कभी चूकते नहीं...। जब भी वे मुझे ऐसी धमकी देते हैं मैं उन्हें मनाती हूँ, समझाती हूँ माँ को काम है । बस अभी आती हूँ...चिंता मत करो। देर रात हो जाए तो दिलासा देती हूँ, आँखे बंद करो- जब खोलोगे मैं तुम्हारे सामने रहूँगीं.......लेकिन मोशे मैं तुमसे क्या कहूँ?


आप सोच रहे होंगे मोशे के जिक्र में आयुष की चर्चा क्यों? इसलिए कि पिछले एक हफ्ते से मुझे आयुष में मोशे और मोशे में आयुष नजर आ रहे हैं। अभी कुछ दिन ही तो हुए हैं...रोता हुआ मोशे या हर गम से अनिभिज्ञ मुस्कुराता हुआ मोशे नरीमन हाऊस में घटे हादसे का चेहरा बन चुका है। हर चैनल मोशे के बहाने मुंबई का दर्द दिखा रहा है, उस रात भी चैनलों पर नन्हा मोशे छाया था। मैं आयुष को खाना खिला रही थी कि मोशे की गमगीन मुद्रा को टीवी पर देख आयुष बोल उठा ...मम्मी देखो, बेबी रो रहा है। फिर खुद से ही प्रश्न किया...बेबी क्यों रो रहा है। नादान ने तुरंत प्रतिउत्तर भी दे दिया...इसकी मम्मी ऑफिस गई होगी!

आयुष ने तो नादानी में कह दिया मम्मी ऑफिस गई होगी? शायद मन ही मन तसल्ली भी कर ली होगी कि उसकी मम्मी की ही तरह मोशे की मम्मी भी ऑफिस से वापस आ जाएगी और रोते मोशे को चुपा लेगी लेकिन ..... आज मोशे दर्द का एक चेहरा है " मुस्कुराता चेहरा।" कितनी प्यारी और दिलकश है उसकी मुस्कान लेकिन ये मुस्कुराहट याद दिलाती है हैवानियत को। जिसने एक मासूम से उसके जन्मदिन के दिन ही माँ का साया छीन लिया। मोशे के अंतहीन रुदन के बाद आयुष मुझे मम्मा या मम्मी कहता है तो दिल में कसक उठती हैं। नन्हें मोशे की गुलाबी अंगुलियाँ भी तो माँ का आँचल ढ़ूढती होगीं। अकसर ऑफिस से लौटते हुए आयुष के लिए गुब्बारा या गेंद खरीदती हूँ...हरी, पीली, नीली खासकर लाल। बच्चों को चटख लाल रंग बेहद पसंद है। अफसोस! खून का रंग भी लाल ही होता है। मोशे का पजामा भी अपनो के दर्द से लाल ही हुआ था।
तस्वीरों में मोशे के हाथों में भी गेंद देखी थी, गेंद का नारंगी रंग भी उसके रोते चेहरे के सामने लाल नजर आ रहा था। प्रार्थनाघर में हाथ में गुब्बारा था। हे भगवान! उसका रंग सचमुच लाल ही था...तब से लेकर अब तक आयुष के लिए गुब्बारा या गेंद खरीदने का साहस नहीं जुटा पाई।

मुंबई के हादसे के बाद मेरे अंदर की माँ को अजीब सा डर सताता है। उन भयावह रातों के बाद अब अकसर रात को उठकर आयुष का चेहरा निहारती हूँ। डर लगता है...नींद मैं भी मुझे पहचान जाने वाले आयुष क्या मेरे बिना जी सकेगें। यह कल्पना ही डरा जाती है। मैं एक माँ हूँ , मोशे के लिए कुछ लिखना चाहती हूँ लेकिन कलम और दिमाग साथ छोड़ देते हैं.....आँखे झलक जाती हैं...बस इतना ही कह सकती हूँ कि

"मासूम मोशे तुझे मैं क्या कहूँ? तुझमें मुझे मेरा मासूम दिखता है। जन्नत में बैठी तुम्हारी माँ की आँखों में आसुओं का दरिया होगा। अपनी माँ की आँख के तारे हिंदुस्तान ही नहीं दुनिया की हर माँ की आँखे नम है। तुम्हारी मासूम मुस्कुराहट के लिए कर रहीं हैं दुआ.....और मुझे विश्वास है कि टीवी पर तुम्हारा कभी रोता कभी मुस्कुराता चेहरा देखकर उस माँ की भी आँखें भीगी होंगी जिसकी कोख से जन्में हैवान ने तुम्हें तुम्हारी माँ से दूर किया है......"
भगवान तुम्हें तुम्हारी महान आया के आँचल में हमेशा यूँ ही मुस्कुराता रखें जैसा तुम मुझे हिंदुस्तान छोड़ते समय टीवी पर दिखाई दिये थे।

आमीन...