Friday, January 9, 2009

वैशाली की नगर वधू से लेकर फैशन फिल्म तक



" क्या मिलेगी नारी को अपनी ही देह से मुक्ति "

फिर एक साल बदल गया......कलैंडर में 2008 की जगह अब 2009 चस्पा नजर आता है लेकिन क्या स्थितियाँ बदलेंगी। खासकर महिलाओं के लिए.....क्या उन्हे मुक्ति मिलेगी अपने ही देह के जाल से। क्या उन्हें सुंदर देह की कठपुतली और भोग्या से बढ़कर कुछ और भी माना जाएगा। इस बार नए साल की शुरूआत नानी के गाँव से की। कुछ दिनों की छुट्टी लेकर पहले ददिहाल जबलपुर गई उसके पास ही एक गाँव है फुलारा.......वहाँ मेरा प्यारा ननिहाल है। यह गाँव काफी छोटा और शोर-शराबे से दूर लगता था लेकिन बीते पाँच सालों ने गाँव की रंगत बदल दी है. अब गाँव के कच्चे घरों की छप्पर पर भी डिश टीवी तैनात दिखता है।

मामा ने भी हमारी छत पर उसे लटका रखा है लेकिन बिजली विभाग की दया से वहाँ दस से बारह घंटे की बिजली नदारत थी सो गाँव का सुकून महसूस हुआ। बुद्धू बक्से के मुँह पर ताले जड़े रहे। कड़ाके की ठंड थी सो बचपन की तरह पंखे की कमी भी नहीं खली। बल्कि दीनदुनिया से दूर नानी का घर साथ में चिपके खेत अजीब सा सुकून दे रहे थे। इसी सुकून के बीच धूप सेंकते हुए तुरंत तोड़ी हुई गदराई बिही (अमरूद) का स्वाद उठाते हुए नाना जी की लाइब्रेरी की याद आई। आनन-फानन में लकड़ी की अटारी(एक कमरे का नाम) पर जाकर नाना की लाइब्रेरी खंगालने लगी। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से पढ़े मेरे नाना को पढ़ने का खासा शौक था..उन्हीं के साथ मैंने अपनी जिंदगी का सबसे पहला हिंदी का उपन्यास चंद्रकांता संतती पढ़ा था। हाई स्कूल में शिवानी से परिचय भी गाँव में ही हुआ। आचार्य रजनीश से लेकर विवेकानंद तक मैंने कई उपन्यास और किताबे नाना की लाइब्रेरी से निकाल कर पढ़े.....लेकिन जाने क्या बात थी कि आचार्य चतुर्सेन के उपन्यास वैशाली की नगरवधू को नाना ने पढ़ने न दिया। तब मैं हाईस्कूल में थी जब नाना ने मेरे हाथों से छीनकर उस उपन्यास को अटारी पर रख दिया।


उसके बाद कई बार रेलवे स्टेशन पर मुझे यह किताब नजर आईं लेकिन जिद्द थी जो नाना पढ़ सकते हैं मैं क्यों नहीं । मैं तो नाना से लेकर ही पढ़ूगी........आज जब नाना नहीं थे तब उनकी लाइब्रेरी में ये किताब बड़ी जतन से रखी दिखाई दी। नानी से प्यार से कहा- आखरी बखत में तेरे नाना किताबें संभाल रहे थे ....जिल्द चढ़ा रहे थे ....कह रहे थे मोनू आए तो दे देना बाकि सब को तो हैरी पॉटर से ही प्यार है। कौन पढ़ेगा इन्हें। लाइब्रेरी में सबसे आगे रखे उपन्यास को महसूस हुआ "नानू खुद कह रहे थे अब नहीं रोकूँगा जा पढ़ ले।"


फिर क्या था ..गुनगुनी धूप में नाना की आरामकुर्सी रखी और रात तक उपन्यास से ही चिपकी रही.। जब तक नानी की मीठी डाँट "अरी बिटुरी तनिक हमारे पास भी बैठ जा कल तो जाना है कि रट शुरू कर देगी ".के बाद याद आया कि रात हो चुकी है। खाना खाकर बिजली विभाग को जमकर कोसा। नानी से तनिक देर बतियाने के बाद अंधेरे में चिमनी जलाकर किताब जारी रही। अगले दिन सुबह इनोवा के सफर में भी अम्बपाली मेरी हमसफर बनी........रस्ता कैसे कट गया पता नहीं चला......अम्बपाली एक मासूम बच्ची जिसकी मासूम इच्छाएँ थीं से लेकर एक खूबसूरत देह की युवती एक गौरवमयी युवती जिसे जबरदस्ती नगरवधू बनाया गया।


उसके बाद जब वह साध्वी बनी तब भी बौद्धों ने भी कहा कि " अब नारी ने बौद्ध धर्म में प्रवेश ले लिया है यह न बचेगा" अर्थात बुद्ध और उनके अनुयायी भी मानते थे कि आम व्यक्ति संत बनने के बाद भी नारी को देह ही मानेगा। नारी के देह की गमक सन्यासी के ब्रह्मचर्य को तोड़ सकती है। इसी उपन्यास में एक और किरदार था कुडली विषकन्या अपनी सुंदर देह का भार ढ़ोती एक और स्त्री। अम्बपाली के बारे में जितना सोचती मन कड़वा होता जाता। महसूस होता कि यह किरदार यदि वास्तव में जीवित होता तो अपनी देहभार के नीचे दबी यह गरिमामयी महिला शायद हर रात एक नई मौत मरता। शाम होते-होते हम जबलपुर पहुँच गए। बहनों ने बड़े चाँव से फैशन लगाई। अपनी कमाई से खरीदें एलसीडी टीवी का रिज्योलूशन दिखाने का उत्साह था...इसी उत्साह में माँ और मैं अपनी थकान भूल गर्म रजाई में घुस फिल्म देखने लगे.........लेकिन जैसे-जैसे प्रियंका चौपड़ा, कंगना रणावत का किरदार आकार लेता जा रहा था वैसे-वैसे मुझे उस किरदार में अम्बपाली नजर आने लगी। लगा हर एक के दिमाग में नारी की देह ही कसमसा रही है। हर जगह जहाँ दिमाग और विद्वत्ता की बात आती है और महिला भारी नजर आती है तो उसके इस दिमाग को उसी की देह के नीचे कुचलने की कोशिशे की जाती हैं। आखिर क्यों?

क्या इस नए साल में नारी को स्वयं उसकी देह से मुक्ति मिल पाएँगी। हमें एक संपूर्ण व्यक्तित्व की तरह सराहा जाएगा। या फिर कोमल भावनाओं की पूँजी नारी भी पुरष की तरह देह को प्रमुखता देने लगेगी.......या देने लगी है तभी तो संजय दत्त, सलमान खान, जॉन अब्राहम के बाद शाहरूख खान और आमिर खान भी अपनी सिक्स और एट पैक देह का प्रदर्शन करते नजर आ रहे हैं......इस साल क्या होगा। मैं तो चाहती हूँ नारी को अपनी ही देह से मुक्ति मिल जाएँ और वो ऊँचे आकाश में उड़े लेकिन यह उड़ान विचारों की हो।