Monday, December 15, 2008

महाशक्ति को जूता !


" बुश साहब बेज्जती के जो सपने हम बगदादियों को चैन की नींद सोने नहीं देते जूते के रूप में ऐसे ही सपने तुम्हें भी मुबारक हो "

गुस्सा, नफरत, भय और भयावह रुदन के बीच रोज मरती आत्मा। सपनों में, हकीकत में खुद को धिक्कारती...बार-बार अहसास दिलाती कि आत्मसम्मान के बिना जिए जाने वाली जिंदगी मौत से बत्तर है। आईना देखने का मन न होता..देख लो तो नजरे खुद अपना चेहरा निहारने से मना कर देती....सिर से पाँव तक आहत और शर्मिंदा वजूद.......( बगदाद के हर युवा की यही कहानी है)

युवा पत्रकार मुंतजर-अल-जैदी द्वारा बुश पर जूता फेंकने की घटना ने एक बार फिर बगदाद के रिसते घाव को दुनिया के सामने ला दिया है। मैं बगदाद में सद्दाम की तानाशाही को जायज नहीं ठहराती...लेकिन बुश के हाथों चल रही अमेरिकी सत्ता ने जो किया क्या वो जायज था ? अमरिकी सरकार का आरोप था कि बगदाद में जैविक हथियार हैं। यह अलग बात है कि अभी तक अमेरिका को जैविक हथियारों के जखीरे के नाम पर कुछ नहीं मिला। तेल के कुओं पर आधिपत्य की तानाशाही सोच ने एक मुल्क को बरबाद कर दिया। बुश पर जूते फेंकने वाले मुंतजर-अल-जैदी ने अपनी जान की परवाह किए बिना बगदाद के युवाओं की भावनाएँ व्यक्त कर दीं- उसने कहा " जूते इराक की विधवाओं और अनाथों की ओर से है "

" किसी की आत्मा पर निशाना साधना हो तो उसे गोली नहीं जूते मारो। " शायद यह युवा पत्रकार भी पूरे देश की बेज्जती का बदला लेना चाहता था। शायद उसकी छटपटाती आत्मा बुश की बेज्जती करके अपने राष्ट्र की बेज्जती का बदला लेना चाहती थी।

आँख बंद करके एक ऐसे देश की कल्पना करके देखिए जिसके सीने पर दूसरे मुल्क की फौजें कदमताल कर रही हों...जहाँ आतंक का तांडव चल रहा हो। सद्दाम की तानाशाही को खत्म करने के लिए अमेरिका ने एक पूरे राष्ट्र को ही नेस्तोनाबूत कर डाला। जो लोग जिंदगी जी रहे थे वे अब घुट-घुट कर मरने के लिए मजबूर हो गए। अब अमेरिका यदि इस मुल्क पर से अपना आधिप्तय समाप्त करने की घोषणा भी कर दे ( सच तो यह है कि आर्थिक मंदी से उबरने के लिए सेना को हटाया जाना आज महाशक्ति की मजबूरी है) तब भी बगदाद ने जो खोया है वह उसे कोई वापस नहीं लौटा सकता। बगदाद की महिलाओं और बच्चों का करूण रूदन हर बगदादी को मौत से बत्तर जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर रहा है।

बगदाद का यही गुस्सा युवा पत्रकार के जूते में दिखाई देता है जैसे जूता खुद चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा हो- " बुश साहब बेज्जती के जो सपने हम बगदादियों को चैन की नींद सोने नहीं देते मेरे रूप में ऐसे ही सपने तुम्हें भी मुबारक हो "

और सच में महाशक्ति के मुँह पर पड़ा यह जूता भले ही अपना निशाना चूक गया हो लेकिन मुंतजर के जूते के रूप में बगदाद के आक्रोश का निशाना सही जगह लगा है। बिना आवाज की यह मार महाशक्ति को हमेशा बताती रहेगी कि " तुम्हारी इज्जत की ही तरह हमारी और हमारे राष्ट्र की इज्जत भी अमूल्य है। "

नारी सिर्फ देह नहीं...


कल रात चैनल सर्फ करते हुए निगाहें कलर्स पर टिक गईं। डॉसिंग क्वीन करके एक और रियलिटी शो आ रहा था...कजिन जिद्द करने लगी। दीदी न्यूज छोड़ों, दिन भर सीरियल चलता रहा...फिर न्यूज अब तो कुछ लाइट देखने दो। पुराने दिनों की तरह कजिन के साथ मस्ती करने लगी....एकाएक मैंटोर का डाँस खत्म हो उनकी स्टूडेंट्स बनने वाली लड़कियों के नाम सामने आना शुरू हुए और यह क्या...पहली बार किसी डॉस शो में बीयरबाला सामने आई....मैरी पुतलियाँ फैलने लगी। बारबाला का स्टेज तक पहुँचना बेहद सुखद लगा...बारबाला बनने के पीछे की मजबूरी ने कोर भिगा दी लेकिन बार बाला से ज्यादा अभिभूत हुई भूमिका से।

सफेद दाग (ल्यूकोडर्मा) से जूझ रही भूमि...जिसे अपनो ने जलाया था...फिर इंजेक्शन के रिएक्शन से आधे शरीर पर सफेद दाग हो गए....भूमि अपनी दास्तां सुना रही थी। दर्शकों को अपने सफेद दाग दिखाने के बाद भूमिका प्रापर मेकअप में सामने आई। पूरे आत्मविश्वास से नृत्य किया...हेमा मालिनी, जीतेंद्र जैसे वरिष्ठ कलाकारों के साथ सभी ने खड़े होकर उसका अभिवादन किया।

आज मैं इसी आत्मविश्वासी लड़की के नजरिए से कहना चाहती हूँ नारी सिर्फ देह नहीं....पुरूष किसी भी देश-काल और युग में नारी को उसकी देह से इतर नहीं देखता। भूमिका की बदरंग देह पुरूष को आकर्षित नहीं करती...लेकिन उसका आत्मविश्वास अच्छे-अच्छे पुरूषों का मान हिलाने के लिए काफी है। भूमिका की बदरंग देह में आत्मविश्वास का खूबसूरत रंग भरा है उसकी माँ ने ...जो अपनी बेटी को कहती है वो खूबसूरत है । उसकी आधी फिरंग है और एक बदसूरत लड़की में आत्मविश्वास के बीज बोती रहीं।

अपने आस-पास के माहौल में देखा है लड़की सुंदर है तो माँ-पिता को शादी की चिंता नहीं। पति अपनी खूबसूरत पत्नि पर इतराता है। वहीं नारी अपनी देह की खूबसूरती को गलत नजरों से बचाती नजर आती है। इन विशलेषणों का अर्थ यह है कि आसपास का माहौल ही उसे समझा देता है कि वह लड़की है, एक खूबसूरत शरीर...लेकिन क्या नारी सिर्फ देह है? उसकी आत्मा नहीं। अभी चोखेर बाली पर "मुझे चाँद चाहिए" फिर घूघूती बासूती जी के ब्लाग पर "इन्हें चाँद चाहिए>" पर खासा विचारविमर्श हुआ। पक्ष-विपक्ष में कई बातें रखी गई। यह विषय किसी भी आगे बढ़ रही नारी को झकझोर देता है क्योंकि नारी को देह से इतर देखा नहीं जाता। हर नारी की तरक्की को उसकी देह से जोड़ दिया जाता है। वह पुरूषों से ज्यादा काम करें...चौबीस घंटे सिर्फ काम करती रहे...उस पर तरक्की करे तो भी कहीं खुले स्वरों में तो कहीं दबे छिपे इस तरक्की को देह से जोड़ दिया जाता है।

लेकिन अब हमें सोच के अपने दायरे बदलने होंगे...नारी सिर्फ देह नहीं है। शरीर से इतर उसका दिमाग है, भावनाएँ हैं सबसे बढ़कर कुछ कर दिखाने का माद्दा है। उसके इस माद्दे की इज्जत करनी होगी और सबसे पहले इस सोच को हम स्त्रियों को ही बदलना होगा। अपनी बच्चियों को बताना होगा कि वे कमनीय देह से इतर भी कुछ हैं। नारी सिर्फ देह नहीं है उसका अपना वजूद है, अस्तित्व है। जिसकी उसे इज्जत करनी होगी और दूसरों से करवानी भी होगी।