मैं निरूत्तर थी, क्योंकि पहले धरती के स्वर्ग को दहलाया जाता था...असम को जलाया जाता था...फिर आई संसद की बारी। उसके बाद तो निर्लज्ज आतंकियों की कुत्सित गतिविधियों से पूरा देश थर्रा गया। कभी मुंबई की लोकल को निशाना बनाया गया तो कभी समझौता एक्सप्रेस को। उसके बाद अजमेर, हैदराबाद, अहमदाबाद, जयपुर, दिल्ली और मुंबई...दिल्ली के कनॉट प्लेस में हुए धमाके बता गए कि अब आतंकवादियों के हौंसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि वे भारत के उच्च मध्यम वर्ग को निशाना बना सकते हैं। कल मुंबई के ताज पर हुआ हमला अभिजात्य वर्ग पर निशाना था। मानो ये आतंकी अट्टाहास कर रहे हों, बच सकते हो तो बचो तुम अपने देश में कहीं भी महफूज नहीं हो....चाहे गरीब हो या अमीर..देशी हो या विदेशी तुम हमारे निशाने पर हो। अब वक्त है इस अट्टाहास के समूल विनाश का। लेकिन यक्ष प्रश्न है - " क्या हमारी सरकार चाहे वह केंद्र की हो या राज्य की, अब होश में आएँगी।" आज ब्रिटिश क्रिकेट टीम वापस जाने की कवायद कर रही है। मैं किस मुँह से जॉनेथन को कहती कि मैं नहीं तुम अपना बोरिया-बिस्तर बाँधों और भारत चले आओं। मैं तुम्हें अपनी नजरों से अपना हिंदोस्तां दिखाऊँगीं। तरक्की के नए सोपान चढ़ता इंडिया ! जॉन की वाइफ कैथी को इंडिया अपील करता है लेकिन कल वो भी आशंकित नजर आई । ताज के गुंबद को जलता देख स्तब्ध कैथी " कम बैक डियर" बस यही कह पाई।
मैं भारत के दिल मध्यप्रदेश में सुरक्षित हूँ लेकिन खुद से ही पूछ बैठती हूँ कब तक...तब तक ही न जब तक आतंकवादी मेरे शांत मालवा को निशाना नहीं बना लेते। कल जिस तरह एटीएस के जांबाजों को निशाना बनाया गया ...निर्दोषों की मौत का आकड़ा सैकड़ा पार कर गया। क्या उसे देखकर सरकारी तंत्र का सिर शर्म से नहीं झुकता। आखिर क्यों हम इतने नपुंसक हो गए हैं? बार-बार आतंकी हमले झेलने के बाद हमारी सरकारें जिम्मेदारी को गेंद की तरह एक दूसरे के पाले में क्यों फेंकती नजर आती हैं। क्यों नहीं हम उठ खड़े होते ...एक दूसरे से हाथ थामते हुए इस आतंक के दानव का सिर कुचलने के लिए।
मुझे याद है जब मैं छोटी थी तब काश्मीर में हल्का सा विस्फोट भी चर्चा का विषय था...लोगों की आँखे नम होती थीं...आज बड़ी सी बड़ी घटना आँखों को नम नहीं करती। हमारे तंत्र की इसी विफलता के कारण आतंकियों का दुस्साहस बढ़ गया है। पहले ये दबे-छिपे विस्फोट करते थे अब खुलेआम मुंबई की आबरू पर हमला करते हैं। एक दो नहीं बल्कि कई जगहों पर बैखोफ आतंकी मशीनगनों और हथगोलों के साथ खुलेआम नरसंहार करते हैं...और अपनों को खोती, छलनी होती बेबस जनता अपने कर्णधार नेताओं की तरफ रूंधे गले और गीली आँखों से टकटकी लगाए देखती रहती हैं।
लेकिन अब नहीं, हम आम भारतीय को भी इस बेबसी की खोल से बाहर निकलना होगा। अभी वक्त है यदि हम एक न हुए और एक होकर आतंक के इस दानव का सिर कुचलने के लिए तैयार न हुए तो फिर वक्त हाथ से निकल जाएगा। हम कभी गर्व से नहीं कह पाएँगें कि हम भारत माँ के सपूत हैं...हम भारतीय हैं...मैं आज भी जोनेथन और कैथी में विश्वास जगाना चाहती हूँ कि भारत खूबसूरत है! सुरक्षित है ! यहाँ आओ, मैं तुम्हें गंगा के घाट दिखाऊँगी, रंगीला राजस्थान घुमाऊँगी, आगरा का ताजमहल तुम्हारा इंतजार कर रहा है, ऊँटी के चायबागानों में काम करने वाले भोले-भाले लोगों से मिलवाऊँगीं, मालवा की काली मिट्टी से रूबरू कराऊँगी...हैसियत नहीं है लेकिन बाहर से ही सही अपने वैभव पर इठलाता मुंबई की शान होटल ताज दिखाऊँगी।
हाँ मैं उन दोनों को भारत बुलाना चाहती हूँ....लेकिन उन्हें बुलावा देने से पहले हमें समूचे तंत्र को झंझोड़ना होगा। अपने खूफिया तंत्र और नाकारी सरकार को कुंभकर्णी नींद से जगाना होगा। आतंकियों के जेहन में भायवह डर पैदा करना होगा...उन्हें अपने बुलंद इरादों से इतना डराना होगा कि वे फिर हमारे देश की अस्मिता की तरफ सिर उठाकर न देख सकें। जी हाँ अब हमें अपने तंत्र को मजबूर करना होगा, हौसलों को बुलंद करना होगा...और उठ खड़े हो आतंक के इस दानव का सिर कुचलना होगा...आमीन
20 comments:
प्रिय श्रुति, तुम्हें ब्लॉग की दुनिया में देखकर बेहद खुशी हुई और तुमने शुरूआत भी एक गंभीर मुद्दे से की है। एक ऐसे समय में जब मुंबई में कई भारतीय मारे गए हैं, इस ब्लॉग के लिए तुम्हें क्या शुभकामनाएं दूं?
रवींद्र जी, कल जबसे जोनेथन और कैथी से बात हुई है मन विचलित है। समझ नहीं आ रहा खुद को दिलासा दूँ या उन्हें विश्वास दिलाऊँ। बुरा लगता है जब लोग हमारे देश की सुरक्षा व्यवस्था को शक की नजर से देखते हैं लेकिन हाँ दिल पर हाथ रखूँ तो खुद भी शर्मिंदगी महसूस होती है कि एक के बाद एक हो रहे हमलों को हम रोक क्यों नहीं पा रहें।
कांग्रेस को सबक सिखाओ- देश बचाओ।
तुमने सच कहा,और सोचा है. इस कठिन समय मैं , आज से ज्यादा भविष्य की चिंता भी करनी पड़ रही है ,लेख मैं तुम्हारी संवेदनाये बहुत कुछ विचार करने पर मजबूर करती है ,
विधु जी...मैं लगातार खबरें देख रही हूँ...मन विचलित हो रहा है। वर्तमान से यदि सबक लेकर आने वाला कल न सुधारा तो हमारा भविष्य हम पर अफसोस करेगा...इसलिए लगता है अब हम सभी को एकजुट हो आवाज उठानी होगी। आप जैसी वरिष्ठ पत्रकार से टिप्पड़ी पाना बेहद सम्मानजनक है।
श्रुतिजी
पर आतंक के दानव का सिर कुचले कौन यही एक यक्ष प्रश्न है। जिन लोगों पर भरोसा जताया उसने तो आतंकियों को पालने पोसने में ही चार साल बिता दिये, फिर चुनाव होंगे और फिर ये लोग अपनी झूठमूठ की उपलब्धियां गिनायेंगे। परमाणु करार की सफलता बतायेंगे।
ये बतायेंगे, वो बतायेंगे पर इस बात को एक बार फिर गोल कर जायेंगे कि हमने आतंकियों को पाला पोसा..
दुख:द तो यह होगा कि हम फिर हंसते हंसते वोट देने जायेंगे, और एक बार फिर किसी नामर्द के नाम पर मुहर लगा कर आ जायेंगे।
हमारी यही नियति है।
दानव का सिर तो बाद में कुचला जायेगा
आईये हम सब मिलकर विलाप करें
श्रुति जी, हमारे चिट्ठाजगत में एक बेहद उदास दिन आपका हार्दिक स्वागत है । आपकी सोच से मैं सहमत हूँ । आशा है भविष्य में भी लिखती रहेंगी । मैंने आशा नहीं छोड़ी है । बदलाव आएगा, हमें जीना है तो लाना ही होगा । आप एक दिन अपने मित्रों को भारत ला सकेंगी ।
कृपया spell check हटा लीजिए । इसके कारण टिप्पणी करने में बहुत कठिनाई होती है । धन्यवाद ।
घुघूती बासूती
श्रुति जी इस से ज्यादा कुछ नही कहना चाहता बस आमीन आपकी सोच फलीभूत हो...
बस एक उदासी है और क्षोभ है राजनीतिज्ञों के प्रति
आपसे सहमत हूँ.आप अगर वर्ड वेरिफिकेशन क टैग हटा ले तो कमेण्ट करने मे सुविधा होगी.
अनिल जी,आप जैसे वरिष्ठ पत्रकार मेरे ब्लॉग पर आए...इसे पढ़ा यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मैं वर्ड वैरिफिकेशन हटाने की कोशिश कर रही हूँ...
हमारी ‘अंतरात्मा’ को जगाना होगा।
दूसरों के (राजनीतिक पार्टियों के) सिर दोष मड़ने से पहले यह सोचें, दिल पर हाथ रख कर कि हम खुद एक नागरिक के तौर पर कितने कर्मठ, सजग और सक्रिय हैं। हमारे नेता हममें से ही तो हैं। क्यों न हम अपने चुनाव के हक को ज्यादा से ज्यादा, सही तरह इस्तेमाल करें, ताकि चुने गए नेता भी अपने पर नैतिक दबाव महसूस करें और जब वे निकम्मा साबित होने लगें तो उन्हें जनमत के जरिए याद दिलाएं कि अब उनकी जरूरत खत्म। मिलकर, एकजुट होकर आवाज उठानी ही होगी, थोड़ी और ऊंची।
Respected Madam
Well said. I wanted to write on this but could not dare to. You are brave. Congratulations!!!
I feel very deep within my heart that nobogy else but each and every Indian is reponsible for what has happened in Bombay. This is purely a result of a corrupt self sitting inside us.
This is just a manifestion of what is going on inside us, the Indians. Shame on us!!!
We are Hypocrites and not a Nationalist. We never were, we never are but I hope and pray.....!
Police men fighting against the terrorsit are the hope of ray of light in the darkness.
Lets hope for the best.
Dr. Chandrajiit Singh
chadar30(at)rediffmail.com
avtarmeherbaba.blogspot.com
ब्लॉग की दुनिया में तुम्हारा स्वागत है श्रुति ! मुम्बई में एक के बाद एक जो घट रहा है, बेहद शर्मनाक है।
बहुत ही सटीक लिखा है
shok divas...bas kya kahe....
aapne jo likha sahi....likha
aapke shabdo main kahin na kahi kranti dikhti hai....
mere blog par aapka swagat hai....www.yomantra.blogspot.com and www.sachhateer.blogspot.com
Jai Ho Magalmay Ho....
shok nahi aakrosh jatao, neta ko okat batao. narayan narayan
यथार्थ को कलम से उकेरता हुआ आलेख आपका स्वागत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारे
रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति
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