Sunday, November 30, 2008

रात अभी बाकी है.....

गहन अंधेरा है
उजास नजर आता नहीं
हर तरफ कुहासा है
क्योंकि रात अभी बाकी है....

ताज पर फिर फहरा गया तिरंगा
लेकिन जमीं पर बिखरा खून अभी बाकी है
शर्मिंदा है जमीर, माँ की नहीं कर पाया रक्षा
हर सिर है झुका क्योंकि रात अभी बाकी है....

उजाले के लग रहे हैं कयास
पर भूलों मत रात अभी बाकी है
गुस्से से भिच रही हैं मुट्ठियाँ
चढ़ रही हैं त्योरियाँ....

बच्चों की मासूम मुस्कुराहट के बीच
माँ के चेहरे पर चिंता की लकीरें बाकी हैं
उठो खड़े हो और लड़ों क्योंकि रात अभी बाकी है
रोशनी की चंद किरणों को समेटों और हुंकार भरो....

माँ के सपूतों उठों, दानवों से लड़ों
रुदन और क्रंदन के बीच कहो
हमने हार नहीं मानी है इसलिए कहते हैं कि
रात अभी बाकी है लेकिन भोर होने वाली है ।

(किसी ने कहा, कानों ने सुना, न जाने क्या हुआ...बस मन किया और की बोर्ड पर अंगुलियाँ चल गईं
और एक कच्ची-पक्की कविता या कहें काफिया लेकिन सच्ची भावनाएँ आकार ले गई। मनोभाव कुछ मासूमों के हैं जिनमें बहुत कांट-छांट करना मुझे गवारा नहीं लगा। )

10 comments:

नीरज गोस्वामी said...

हमने हार नहीं मानी है इसलिए कहते हैं कि
रात अभी बाकी है लेकिन भोर होने वाली है ।
भोर होने वाली है...आशा जगाती पंक्तियाँ हैं....काश ये सच हो...
नीरज

Udan Tashtari said...

सच्चे मन के भाव उभर कर आये हैं..इसका कोई व्याकरण नहीं होता. बहुत दिल के करीब!!

Anonymous said...

dil ko chu gayi aapki ye kavita .

"अर्श" said...

bahot khub likha hai aapne ... sath me sameer ji se bhi sahamat hun.. meri salah mane to ye word verification hata le..... dhero badhai aapko...

सचिन मिश्रा said...

Bahut badiya.

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

shruti ji,
Aap ki kavita "Raat abhi baaki hai " padke accha laga. ..very good wishes to you .hope to see you writing more and more of this kind.please visit my blog HEY PRABHU YEH TERAPATH & "MY BLOG" (http://ctup.blog.co.in) I also want to comment on my blog.
Thank you and god bless you.

पटिये said...

पर सवाल ये है श्रुति की इस रात की सुबह क्यों नहीं होती....जिस तरह रात के फेरे के बाद आती है सुबह...हमारे मुल्क में ये रात खत्म क्यों नहीं होती......शिफाली

Manish4all said...

ब्लॉग, पत्रकारों के लिए अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट माध्यम है. तुम्हारा प्रयास सराहनीय है.

Anonymous said...

apne kaavyadip me ummeedon ki baati yunhi jalaye rakhiye.kahi aakroshit jwala ki ushma rojmarra me awshoshit na ho jaye.maa ke aankhon ke kuch aur taare naa bujh jayen.ye amawas jaroor hai shyam wiwir nahi ujas awashya hoga!

vijay kumar sappatti said...

aapki is kavita mein desh ke prati jo dard hai use aapne vyakth kiya hai ..

bahut sundar



badhai

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/